इस संसार में हर व्यक्ति बुद्धि पाना चाहता है। बुद्धिमान लोग हर जगह प्रशंसा और आदर पाते हैं। वे अपने सुझावों से दूसरों की सहायता भी कर सकते हैं क्योंकि बुद्धिमान लोग न केवल अपने लिए परन्तु वे अपने परिवार, कलिसीया और समाज के लिए भी लाभदायक होते हैं।
बुद्धि सचमुच एक वरदान है, परन्तु हमें उसे परमेश्वर से मांग कर हासिल करना पड़ता है। हम सीख-पढ़ कर ज्ञानी तो बन सकते हैं परन्तु बुद्धिमान होना अलग बात है क्योंकि बुद्धि ज्ञान से उत्तम वस्तु है। अपने जीवन में हर मुकाम पर सही निर्णय लेने के लिए हमें बुद्धि की आवश्यकता है। अब सवाल उठता है कि बुद्धि किसे, कहाँ से और कैसे प्राप्त होती है? बाईबल में नीतिवचन की किताब बुद्धि के विषय में बहुत कुछ सिखाती है। नीतिवचन 1 के अनुसार:
1. बुद्धि की शुरुआत परमेश्वर का भय मानने से होती है।“यहोवा का भय मानना बुद्धि का मूल है।” (नीतिवचन 1:7) बुद्धि हासिल करने के लिए सबसे पहले हमें यह मानना होगा कि परमेश्वर सचमुच हैं, और फिर उन पर विश्वास करके हमें उनके भय में जीना होगा। बाईबल कहती है कि जो व्यक्ति कहता है कि परमेश्वर है ही नहीं, वह मूर्ख है (भजन 14:1) बाईबल के अनुसार नास्तिक लोग मूर्ख हैं। परमेश्वर का भय मानने से हम बुद्धिमान बनते हैं। परमेश्वर का भय ऐसा भय नहीं जैसा हमें किसी जानलेवा जानवर का होता है। उदाहरण: हम जंगली शेर के भय के कारण शेर से दूर भागेंगे। परमेश्वर का भय मानना इसके विपरीत है। परमेश्वर का भय हमें उनसे दूर नहीं, उनके करीब ले जाता है। परमेश्वर का भय मानना अर्थात अपने दिल की गहराई से उनका आदर-सम्मान करना और ऐसे काम करना जिनसे वह हमसे प्रसन्न हों। परमेश्वर का भय मानना अर्थात परमेश्वर के लिए जीना।
2. जैसा हमने ऊपर देखा, बुद्धि पाने वालों का पहला चिन्ह होगा कि वह परमेश्वर का भय मानेंगे (नीतिवचन 1:7)। अब बुद्धि पाने वालों में दूसरा चिन्ह यह दिखाई देगा कि वह पश्चाताप करेंगे। “तुम मेरी डांट सुन कर मन फिराओ।” (नीतिवचन 1:23) जी हाँ, पश्चाताप का सच्चा अर्थ है मन फिराना। अर्थात अपने कर्मों को, अपने रास्तों को बदल देना। ग़लत दिशा में जाना छोड़ कर सही दिशा में चलना शुरू करना ही सच्चा पश्चताप है। कुछ लोग सोचते हैं पश्चाताप का अर्थ है मन ही मन दुखी महसूस करना, रोना और छाती पीटना। हम अपने पश्चाताप की भावना रो कर अवश्य ज़ाहिर कर सकते हैं, परन्तु केवल रोना ही सच्चा पश्चाताप नहीं होगा। अपनी पापमय सोच, वचन और कर्म को त्यागना ही सच्चा पश्चाताप है।
3. बुद्धि पाने वाला बुरी संगती में नहीं जाता। (नीतिवचन 1:10-19) हमें बुराई की ओर खींचने वाले बहुत होंगे। हमें सदा उनका सामना करने के लिए तैयार रहना होगा। पाप करने वाले हमें फुस्लायेंगे, परन्तु उनकी बातों में न आना ही बुद्दी है क्योंकि उनका अंत बुरा है। पापी अपने पाप से अपने लिए ही जाल बिछाता है। (नीतिवचन 1:17-18)
4. बुद्धि पाने वाला जीवन में हमेशा और ज़्यादा सीखने की चाह रखते हैं। नीतिवचन 1:5 में लिखा है: “कि बुद्धिमान सुन कर अपनी विद्या बढ़ाए।” नीतिवचन 1:22 के अनुसार, “हे भोले लोगो, तुम कब तक भोलेपन से प्रीति रखोगे?” बुद्धिमान व्यक्ति ज्ञान के विषय में अपनी मौजूदा स्तिथि से संतुष्ट न रह कर और ज़्यादा सीखना चाहता है, अपने ज्ञान को और बढ़ाना चाहता है। नई बातों को सीखना चाहता है।
5. बुद्धि सब के लिए उपलब्ध है। बुद्धि कुछ चुने हुए लोगों के लिए ही नहीं है।नीतिवचन 1:20,21 के अनुसार बुद्धि स्वयं हमें ऊंचे स्वर से पुकारती है और हमें चेतावनी देती है। बुद्धि सब के लिए है, परन्तु सब उसे नहीं पाते क्योंकि सब उसकी चाह नहीं रखते। याकूब की पत्री 1:5 में लिखा है, “पर यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्वर से मांगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उसको दी जाएगी।” जब सुलेमान इजराइल का राजा बना तो परमेश्वर ने उसे दर्शन दिए और कहा, “जो कुछ तू चाहे कि मैं तुझे दूं, वह मांग।” (1 राजा 3:5) इस अवसर का सुलेमान ने उचित उपयोग किया और उसने विश्व की सबसे उत्तम वस्तु मांगी – बुद्धि, जो परमेश्वर ने बड़ी प्रसन्नता से सुलेमान को दी। (1 राजा 3:8-13) यदि आपके पास बुद्धि नहीं है, तो परमेश्वर से मांगें, वह ज़रूर देंगे।
यदि हम इन बातों को नकार देंगे तो हमें इसका परिणाम ज़रूर भुगतना पड़ेगा। हम अपनी ज़िन्दगी में जो भी चुनाव करते हैं, उसके परिणाम को तो हमें सहना ही पड़ेगा, विशेषकर यदि हम बुद्धि की आवाज़ को न पहचानें। नीतिवचन 1:24-32 में यह बात स्पष्ट समझाई गई है।
समय रहते क्यों न हम परमेश्वर से अपने जीवन के लिए बुद्धि मांगें और अपने जीवन को सुन्दर, आशीषित, फलवन्त और लाभदायक बनाएं।
परमेश्वर का धन्यवाद हो जो हमारी प्रार्थनाओं को सुनते हैं।
पास्टर जॉय गिल