जैसे जैसे हम परमेश्वर के नज़दीक जाते जाएंगे, पाप का बोझ बड़ा लगता जाएगा। पाप भयंकर लगेगा, घिनौना लगेगा, पवित्र आत्मा हमें निरंतर हमारा पाप दिखाएगा, और छोटे से छोटा पाप भी हमें पश्चाताप की ओर लेके जाएगा। यही पवित्र बनने की प्रक्रिया है। यह जीवन भर चलती है।
इसलिए, यदि हमें पाप छोड़ना है, तो पाप छोड़ने की मेहनत करने से ज़्यादा हमें परमेश्वर के करीब जाने की ज़रूरत है। जैसे आग में कोई भी कठोर पदार्थ रखने से वह पिघल कर गायब सा हो जाता है, वैसे ही परमेश्वर के पास जाने से हमारा पाप हमारे अंदर कम होते होते, एक दिन गायब हो जाएगा।
जैसे जैसे हम परमेश्वर से फिर दूर होते जायेंगे, पाप जीवन में फिर से आएगा। इसलिए, पाप से तो हमारा युद्ध चलता रहेगा, जब तक हम धरती पर हैं, परंतु पाप से बचने का तरीका हमारे पास है, और वह है परमेश्वर के करीब रहना।
पाप छोड़ने का प्रयत्न मात्र हमारा प्रथम कदम नहीं, परंतु प्रथम कदम तो परमेश्वर के पास जाना है। सामर्थ उसके स्पर्श में है, हमारे परमेश्वर-रहित संघर्ष में नहीं!
आज, परमेश्वर के करीब आने का विचार करें, और कदम बढ़ाएं, परमेश्वर की ओर। वह सहारा देगा।