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मैं शैतान को बिजली के समान स्वर्ग से गिरा हुआ देख रहा था।

पृष्ठभूमि

लूका 10:18-20 बाइबल में मेरा पसंदीदा अनुच्छेद बन गया है।

अध्याय 10 की शुरुआत यीशु के द्वारा अपने 72 अनुयायियों को अपने कटनी के खेत में जाने, लोगों से जुड़ने, परमेश्वर के राज्य का प्रचार करने और बीमारों को चंगा करने के लिए नियुक्त किेये जाने के द्वारा होती है। इन 72 लोगों का सीधे यीशु द्वारा नियुक्त किया जाना कितना रोमांचक रहा होगा! ये लोग मसीह के 12 चेलों के निकटतम आंतरिक घेरे से नहीं थे। हो सकता है कि उन्होंने पहले कभी भी मसीह की उसके कार्य में सहायता न की हो, और अचानक राज्य की सेवकाई के लिए यह बुलाहट उनके लिए एक आश्चर्य के रूप में आई होगी। वे शायद घबराये और डरे हुए भी थे।

परन्तु परमेश्वर ने उनके द्वारा विस्मयकारी सामर्थ्य के साथ कार्य किया। वचन 17 कहता है कि वे यीशु के पास आनन्द से भरे हुए यह बताने के लिए लौटे कि उनके पास दुष्टात्माओं के ऊपर भी अधिकार है। परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि यीशु अंधकार की सेनाओं पर उनकी विजय में उनके साथ आनंदित नहीं हुआ। उनके आनन्द के क्षण में, उसने उन्हें एक चेतावनी दी जो सभी विश्वासियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

किस बात से आनन्दित ना हों

यीशु दुष्टात्माओं पर उनकी सामर्थ्य से, प्रभावित नहीं था और इसका एक अच्छा कारण भी था। यीशु ने स्वर्ग में अंतिम आत्मिक युद्ध देखा जब शैतान और उसकी दुष्टात्माओं की सेना ने परमेश्वर के सिंहासन को हथियाने की कोशिश की थी। शैतान बुरी तरह पराजित हुआ था और उसे स्वर्ग से बाहर निकाल दिया गया था। यीशु जानता था कि परमेश्वर के पास शैतान और दुष्टात्माओं पर पूर्ण अधिकार है और परमेश्वर ने यह अधिकार उसके अनुयायियों को भी दिया है। लेकिन वह यह भी जानता था कि परमेश्वर के अनुयायियों को शैतान के ऊपर अपनी सामर्थ्य या किसी भी सेवकाई की सफलता में अपना आनन्द नहीं ढूंढना चाहिए। वचन 19 में, यीशु ने कहा कि, “इससे आनन्दित मत हो कि आत्मा तुम्हारे वश में है।”

मसीह के सभी अनुयायियों के लिए भी वही संदेश है। आनन्दित न हों कि दुष्टात्माएँ आपकी सुनती हैं। आनन्दित न हों कि आपका उपदेश शक्तिशाली है। आपकी बच्चों की सेवकाई, आपकी जवानों की सेवकाई, आपकी पुरुषों या महिलाओं की सेवकाई, गरीबों तक आपकी पहुंँच, या आपकी कलीसिया के विकास में आनन्दित न हों। लेकिन मसीह के सेवकों के रूप में, हमारी सेवकाई की सफलताओं में सबसे अधिक गहराई से आनन्दित होना अत्याधिक सरल है। अपनी सेवकाई की किसी भी प्रकार की सफलता के बारे में याद करें, चाहे वह बड़ी हो या छोटी, और यह शायद आनंद का एक रोमांचक समय था।

सेवकाई की सफलता में आनन्दित होने के 2 गंभीर खतरे

लेकिन सेवकाई की सफलता कभी भी हमारा सबसे गहरा आनन्द नहीं होना चाहिए क्योंकि हमारा सबसे गहरा आनंद और सबसे बड़ा उत्साह हमेशा परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते और उसके क्षमा किए गए पुत्र और पुत्रियों के रूप में होना चाहिए। जब हम अपनी खुशी को सेवकाई की सफलता (या परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते के अलावा किसी भी चीज में) में रखते हैं तो दो गंभीर खतरे होते हैं। पहला खतरा यह है कि हम सफल होंगे और अपनी सफलता में भूल जायेंगे कि सबसे महत्वपूर्ण क्या है, अर्थात् परमेश्वर के साथ हमारी बातचीत। कई अत्यंत सफल प्रचारक और कलीसिया के अगुवे हुए हैं जिनका परमेश्वर के साथ कमजोर या लगभग न के बराबर संबंध रहा है। अफसोस की बात यह है कि उनका जीवन इस बात का दुखद उदाहरण है कि कैसे नहीं जीना है। (इसके लिए हमारे मनों में आने वाला सबसे ताजा उदाहरण रवि जकर्याह का है।)

दूसरा खतरा यह है कि हम अपनी सारी आशा सेवकाई की सफलता (या मसीह के अलावा कुछ भी) में रखेंगे, और हम इसे प्राप्त करने में असफल होंगे। जब ऐसा होता है, तो यह दुनिया-बिखरने जैसा होता है और इसने कई लोगों को गहरे टूटेपन, तनाव और निराशा के अवसरों में डूबने का कारण बना दिया है। अक्सर यह परमेश्वर की इच्छा नहीं होती है कि वह हमें सेवकाई की वह सफलता प्रदान करे जो हम चाहते थे क्योंकि वह हमें विकसित करने के लिए चुनौतियों का उपयोग करना चाहता है, वह हमें घमण्ड से दूर रखना चाहता है, या लाखों अन्य कारण हो सकते हैं कि हम जिस चीज की आशा करते हैं वह वास्तविकता नहीं बनती है। मैंने सेवकाई की विफलता की इस भावना का अनुभव किया है और एक से अधिक बार बाद की निराशाओं में गिरा हूं। लेकिन खुद को इससे बचाने के लिए सीखने से मेरा जीवन बदल गया है, और यही कारण है कि वर्तमान में यह अनुच्छेद पूरी बाइबल में मेरा पसंदीदा है। क्योंकि वचन 19 के अंत में, यीशु अपने अनुयायियों को इस बात के लिए आनन्दित होने के लिए कहते हैं कि उनके नाम स्वर्ग में लिखे गए हैं। उस कथन में बहुत कुछ भरा हुआ है, लेकिन बात यह है कि हमारा सबसे गहरा आनंद परमेश्वर के सामने हमारे खड़े होने की स्थिति में पाया जाना चाहिए।

किस बात के कारण आनन्दित हों

इसलिए आनन्दित हों कि आपका नाम स्वर्ग में लिखा हुआ है। आनन्दित हों कि आप परमेश्वर के मूल्यवान पुत्र या पुत्री हैं। आनन्दित हों कि आपके पाप आपके विरुद्ध कभी नहीं गिने जाएँगे। आनन्दित हों कि आपके पास मसीह में अनन्त जीवन है। और अपनी सबसे बड़ी असफलताओं और कठिनाइयों के बीच भी, हमेशा आनन्दित रहो, क्योंकि कोई भी असफलता या कठिनाई आपको कभी भी हमारे प्रभु मसीह यीशु में परमेश्वर के प्रेम से अलग नहीं कर पाएगी (रोमियों 8:35-39), और आनन्दित होने की ये बातें हमेशा निराश होने की बातों की तुलना में असीम रूप से बड़ी होंगी।

लूका 10:18-20

उसने उनसे कहा, “मैं शैतान को बिजली के समान स्वर्ग से गिरा हुआ देख रहा था। देखो, मैं ने तुम्हें साँपों और बिच्छुओं को रौंदने का, और शत्रु की सारी सामर्थ्य पर अधिकार दिया है; और किसी वस्तु से तुम्हें कुछ हानि न होगी। तौभी इससे आनन्दित मत हो कि आत्मा तुम्हारे वश में हैं, परन्तु इस से आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग पर लिखे हैं।”

RH